भूमिपुत्रों और मराठी अस्मिता का झंडा बुलंद करने के लिए कोई भी लड़ाई लड़ने को तैयार नेताओं के
लिए एक दुखद संदेश है। वह यह कि बीएमसी के स्कूलों में मराठी पढ़ने वाले छात्रों की संख्या तेजी से गिर रही है और उतनी ही तेजी से अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों और छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है। हां, मराठी की अपेक्षा देखें तो हिंदी का बोलबाला कायम है। पिछले 6 सालों में जहां मराठी माध्यम के 68,125 छात्र कम हुए तो हिंदी माध्यम के 22,071 छात्र ही कम हुए। यानि की हर तीन मराठी छात्र के पीछे एक हिंदी माध्यम का छात्र कम हुआ है। जबकि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में 8,219 का इजाफा हुआ। साल 2004-05 से लेकर साल 2009-2010 तक मराठी माध्यम ने जहां 945 शिक्षक खोए वहीं पर अंग्रेजी माध्यम ने 323 तथा उर्दू माध्यम ने 497 शिक्षकों का 'गेन' किया।
बहरहाल, आरटीआई से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि मराठी माध्यम में शिक्षा पाने के लिए विद्यार्थियों की ऐसी तंगी पहले कभी नहीं रही। अब महानगर की मनपा शालाओं में हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों का बहुमत है। शैक्षणिक सत्र 2009-2010 में हिंदी माध्यम के 1 लाख 14 विद्यार्थी थे जबकि मराठी भाषी विद्यार्थियों की संख्या मात्र एक लाख 7 हजार रह गई।
आरटीआई के जरिए यह सूचना हासिल करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गलगली का कहना है कि मराठी अर्थात मायबोली और भूमिपुत्र सिर्फ का विकास सिर्फ राजनीतिक विकास का मुद्दा है, जबकि हकीकत तो यह है कि भूमिपत्र दिनों-दिन रोजगारपरक भाषा अंग्रेजी की तरफ आकषिर्त होते जा रहे हैं। कुर्ला का हवाला देते हुए गलगली ने कहा है कि यहां के कुछ मनपा स्कूलों की हालात देखकर यह कहीं से नहीं कहा जा सकता है कि यह किसी 20,000 करोड़ रुपए के सालाना बजट वाली महानगरपालिका के स्कूल हैं। उन्होंने बताया कि बारिश के दौरान तो इन स्कूलों की हालत बद से बदतर हो जाती है। उनका कहना है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो एक दिन मनपा स्कूलों में छात्रों का अकाल हो जाएगा।
पिछले 6 सालों के आंकड़े बताते हैं कि इन सालों में 38.8 प्रतिशत मराठी विद्यार्थी कम हुए हैं। 2004-2005 में 1 लाख 75 हजार मराठी माध्यम के विद्यार्थी थे और हिंदी के विद्यार्थी उसी काल में मात्र एक लाख 35 हजार थे। 2004-2005 में अंग्रेजी माध्यम के मात्र 18 हजार 4 सौ 18 विद्यार्थी मनपा शालाओं में थे। 2009-2010 तक यह संख्या बढ़कर 26,637 हो गई। हिंदी की बात करें तो यहां भी 16 प्रतिशत (22,071) विद्यार्थी कम हुए। गत 5 सालों में मराठी माध्यम के स्कूल भी कम हुए हैं। स्कूलों की संख्या 450 से घटकर मात्र 413 रह गई है। हिंदी माध्यम के स्कूल 235 से 233 हुए। अतिरिक्त मनपा आयुक्त (शिक्षा) ए. के. सिंह का कहना है कि उच्च शिक्षा का माध्यम और पुस्तकें अंग्रेजी में होने कारण विद्यार्थी अंग्रेजी का रुख कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने मनपा शालाओं के खस्ताहाल को भी विद्यार्थियों के विमुख होने का कारण बताया।
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