सोमवार, 11 जून 2018

प्रणब मुखर्जी की मौजूदगी और संघ की कार्यशैली को समझें : केएन गोविंदाचार्य, (पूर्व प्रचारक, RSS )

प्रणब मुखर्जी की मौजूदगी और संघ की कार्यशैली को समझें : केएन गोविंदाचार्य, (पूर्व प्रचारक, RSS )
भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी महोदय आगामी दिनों में नागपुर मे संघ के एक माह के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह मे मुख्य अतिथि के नाते संघ के मंच पर उपस्थित रहेंगे.
इस समाचार से मीडिया क्षेत्र में काफ़ी हलचल है, उस हलचल में दलीय राजनीति के गर्द-गुबार के कारण संघ की कार्यशैली के कई पहलू सामने नहीं आ रहे हैं.
वैसे तो बड़े-बड़े कई राजनैतिक नेता विभिन्न अवसरों पर संघ के शिविर में, संघ के मंच पर, और अनौपचारिक विचार-विमर्श हेतु संघ के लोगों से मिलते रहे हैं परंतु प्रणब दा के जाने की ख़बर कुछ ज़्यादा ही चर्चा में रही है
एक मीडियाकर्मी ने तो बताया कि अटकलबाज़ी चल रही है कि आवश्यकता पड़ने पर संघ के लोग प्रणव मुखर्जी का नाम सत्ताशीर्ष के लिए सुझा सकते हैं, जबकि ये बात पूर्णतः निराधार है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विस्तार का पहला क़दम है नवीन संपर्क यानी नये लोगों से संपर्क करना. उनका स्वभाव, प्रकृति और संघ के बारे में उनकी क्या जानकारी है ये सब जान-समझकर संघ के कार्य के बारे में उनसे संवाद स्थापित करना.
आत्मीयता और आदरपूर्वक संघ के स्वयंसेवक नए व्यक्ति को संघ से परिचित कराते हैं. प्रश्नों का, जिज्ञासाओं का उत्तर देते हैं, उत्तर नहीं सूझने पर अपने अधिकारी से बातचीत कराने का वादा करते हैं और फिर संपर्क, संवाद जारी रहता है.
संघ की मान्यता है कि संभावनाओं के तहत संपूर्ण समाज के सभी लोग स्वयंसेवक हैं, इनमें से कुछ आज के हैं, और कुछ आने वाले कल के.
नवीन संपर्क से शुरू होकर समर्थक, कभी कार्यक्रमों में आने-जाने वाले, फिर रोज़ शाखा में कुछ दायित्व लेने वाले, तत्पश्चात और नए लोगों से संपर्क कर, उन्हें शाखा में लाकर, स्वयंसेवक बनानेवाले बनते हैं, सामान्यतः हरेक का यह विकास क्रम होता है. जिसकी धुरी है संघ की शाखा.
उसमें एक घंटे मैदान में शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक संस्कार दिया जाता है, स्वयंसेवक शेष 23 घंटे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक तीनों पहलुओं में संतुलन बैठाता हुआ जीवन जीता है.
समाज के अनेक क्षेत्रों में बदलाव का भी हिस्सा बनता है चाहे वो शिक्षा, सेवा, प्रबोधन, राजनीति या अन्तिम व्यक्ति के हक़ और हित में किसी भी तरह से चल रहे रचनात्मक अथवा आंदोलनात्मक प्रयास हों.
हर स्वयंसेवक वर्ष में कम से कम 5-7 नए लोगों को संघ के संपर्क में लाने की कोशिश भी करता है. उसमें भी सोच-समझकर प्रभावी लोगों को चिन्हित कर अपने-अपने दायरे में संपर्क करने की कोशिश भी करता है.
संघ के लोग चाहते हैं कि सभी जाति, क्षेत्र, भाषा, संप्रदाय के तबके हों या पढ़े लिखे, अनपढ़, डाक्टर, वक़ील, किसान, मज़दूर हो, सभी तक संघ का कार्य पहुँचे.
स्वयंसेवक का लक्ष्य रहता है, कोशिश रहती है कि संघ कार्य के इस संस्कार अभियान में सभी का समर्थन और सहयोग मिले.
कोई विरोधी है तो अपनी आत्मीयता के व्यवहार से उसका विरोध कम हो, वो संघ कार्य को नज़दीक आकर देख सके, उसका भ्रम मिटे.
जो तटस्थ हैं, अपने संपर्क, संबंधो से वो अनुकूल बने, जो अनुकूल बने वो शाखा में दिखे, जो शाखा पर दिखे वो सक्रिय होकर शाखा का विस्तार करे और समाज के लिए एक जागरुक नागरिक की भूमिका भी निभाए. यह अपेक्षा रहती है.
प्रणब मुखर्जी के संदर्भ में सार्वजनिक जगत में आज जो चर्चा चल रही है, उसके पीछे हरेक घटना या उपक्रम के पीछे राजनीति देखने की मीडिया दृष्टि भी एक कारण है.
ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र में बहुत से व्यक्ति शाखा में लाए गए हैं. उदाहरण हैं लोकनायक जयप्रकाश नारायण, संघ के कार्य का उनका पहला संपर्क सन 1967 में बिहार के अकाल में कार्यरत स्वयंसेवको के माध्यम से हुआ था.
उस समय बिहार, नवादा ज़िला के पकड़ी बरांवां प्रखंड में अकाल पीड़ितों की सहायता में लगे स्वयंसेवको के प्रकल्प को देखने के लिए जयप्रकाश जी आए थे.
सभी सेवा कर्म स्वैच्छिक हैं, किसी को कोई वेतन नहीं है, सभी पढ़े-लिखे भी हैं, अपने मन से 15-15 दिन का समय लगा रहे है, इस तथ्य ने जयप्रकाश नारायण को प्रभावित किया था.
उन्होंने मीडिया में टिप्पणी भी की कि संघ के स्वयंसेवको की देशभक्ति किसी प्रधानमंत्री से कम नहीं है.
कालांतर में वे संघ समर्थित छात्र आंदोलन में शामिल हुए. आंदोलन का नेतृत्व भी किया. जेपी आंदोलन के दौरान जनसंघ के अधिवेशन में जयप्रकाश नारायण ने कहा कि अगर जनसंघ फ़ासिस्ट है तो मैं भी फ़ासिस्ट हूँ.
सन 1978 में जनता पार्टी के शासन के दौरान जयप्रकाश जी ने संघ के पटना में आयोजित प्राथमिक शिक्षा वर्ग को संबोधित किया था.
इसी प्रकार कन्याकुमारी में विवेकानंद सेवा स्मारक के निर्माण में जिनकी विशेष भूमिका रही वे एकनाथ रानाडे संघ के ही स्वयंसेवक थे. और उन्हें कांग्रेस, कम्युनिस्ट आदि सभी पार्टी की सरकारों के ओर से भी सहयोग प्राप्त हुआ.
संघ के ही स्वयंसेवक रज्जु भैया (जो बाद में संघप्रमुख भी बने) के प्रति उतर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्त की आत्मीयता सर्वविदित है.
उसी प्रकार नानाजी देशमुख का कांग्रेस समेत कई दलों के प्रमुखों के घरों के अंदर भी प्रवेश था और वे लोग नानाजी को अपने घर का ही मानते थे.
रोज़ टहलने जाने वाले केरल में कम्युनिस्ट नेता श्री अचुय्त मेनन हो या दिल्ली में सुबह टहल रहे नार्थ एवेन्यू में प्रणब दा हो या फिर अशोक रोड पर टहल रहे कांग्रेस के महासचिव केएन सिंह हों, उसी समय सुबह की शाखा के लिए हाफ़ पैंट में जा रहे स्वयंसेवक, इन श्रेष्ठ लोगों को सिर झुका कर प्रणाम करने में नहीं चूकते थे.
ये प्रणब दा ही हैं जिनके प्रबल संपर्क से आडवाणी जी, खंडूरी जी, श्री हरीश रावत, श्री अजित जोगी, डाक्टर मनमोहन सिंह एवं उनका परिवार, श्री जयराम रमेश, उमा भारती जी के सहयोग से गंगा मइया को राष्ट्रीय नदी के दर्जे से विभूषित किया जा सका.
दलीय सीमाओं से परे हटकर देश समाज के लिए परस्पर सहयोग करने की भारतीय परंपरा बहुत गहरी है. चुनावी राजनीति के लटके-झटकों, दाव-पेंच, मर्यादा उल्लंघन से भारत की शालीनता को खरोंच आती है.
संघ की कार्यशैली के बारे में एक वरिष्ठ स्वयंसेवक प्रो. यशवंत राव केलकर कुछ नुस्ख़े बताया करते थे. जैसे हर धातु तो पिघलती ही है, कोई धातु ऐसी नहीं जो ना पिघले. केवल उसके लिए जितना आवश्यक है उतना ताप दिया जाए.
अगर कोई धातु नहीं पिघलती तो उसका दोष नहीं है, जो पिघलाने गया उसमें ताप और तापक्रम कम है. इसलिए धातु पिघलती नहीं है. ऐसे में अपना ताप और तापक्रम बढ़ाने के लिए स्वयंसेवक को साधना बढ़ानी चाहिए.
धातु से तात्पर्य है नया व्यक्ति. वो कहा भी करते थे कि पूरा समाज एक है. सभी स्वयंसेवक हैं. कुछ आज शाखा जाने वाले है कुछ आनेवाले कल में. इसलिए सबके प्रति नि:स्वार्थ स्नेह ही अभीष्ट है. फिर कहा गया था कि कोई एक बार शाखा आया, स्वयंसेवक बना तो जीवन भर के लिए स्वयंसेवक है, उससे वैसे ही संस्कार, व्यवहार की अपेक्षा है.
इस अर्थ में, इस हिसाब से संघ के कार्य में प्रवेश हमेशा और बहिर्गमन निषेध की स्वभाविक स्थिति बनी रहती है. प्रणब मुखर्जी या जयप्रकाश नारायण जी के समान समय-समय पर देश में प्रति वर्ष हज़ारों नए लोग गुरुपूर्णिमा कार्यक्रम या संघ के प्रचलित 6 उत्सवों या वार्षिक उत्सवों मे शामिल होते रहते हैं.
संघ के स्वयंसेवक अपनी क्षमता और संपर्क परिधि के अनुसार नए लोगों से मिलते हैं उनके घर जाते और विश्वास जीतते हैं.
आज लगभग देश में 50 हज़ार से ज़्यादा शाखाएँ हैं. रोज़ शाखा जाने वाले लाखों है. कई करोड़ जन देश में और दुनिया में संघ कार्य की परिधि में हैं. यह संघ की 90 वर्ष से अधिक की निस्वार्थ स्नेह पर आधारित कार्यपद्धति का यह सहज परिणाम है.
जनता में अधिक प्रसिद्ध और एक विशिष्ट पद पर रहने के कारण प्रणब दा का नागपुर जाना विशेष चर्चा का विषय बना है.
इस शोर-गुल के बीच निस्वार्थ स्नेह पर आधारित नित्य सिद्ध शक्ति खड़ी होने में संघ संस्थापक डाक्टर हेडगेवार की गढ़ी हुई सर्वजन सुलभ, अचूक, कार्यपद्धति की ओर ध्यान जाना उपयोगी होगा.
आज लाखों अनाम स्वयंसेवक लाखों प्रकल्पों को खड़ा करने में शांत मन से इसी कारण जुटे हैं.

बसपा प्रमुख मायावती जिंदगी भर नहीं भूलेंगी वो काला दिन, जब हुआ था उनकी इज्जत और जान पर हमला तो एसएसपी लखनऊ शांत खड़े होकर फूंक रहे थे

बसपा प्रमुख मायावती जिंदगी भर नहीं भूलेंगी वो काला दिन, जब हुआ था उनकी इज्जत और जान पर हमला तो एसएसपी लखनऊ शांत खड़े होकर फूंक रहे थे
7 जून 2017, बुधवार,
बसपा और इसकी सर्वेसर्वा मायावती ने अपने अब तक के राजनैतिक कैरियर में बहुत उतार चढ़ाव देखा है। फर्श से अर्श तक की यात्रा और फिर अर्श से फर्श तक की फिसलन!
मायावती और उनकी पार्टी ने ये सब कुछ देखा है, अपनों का बार बार धोखा देना, जिनको सब कुछ दिया उनका ही साथ छोड़कर दूर भाग जाना।
लेकिन 2 जून 1995 को उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो हुआ वह शायद ही मायावती ने इस घटना से पहले कभी सोचा होगा अथवा कहीं हुआ होगा। मायावती उस वक्त को जिंदगी भर नहीं भूल सकतीं। उस दिन को प्रदेश की राजनीति का काला दिन कहें तो कुछ भी गलत नहीं होगा। उस दिन एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर दलित नेता की आबरू और जान पर हमला करने पर आमादा थी। उस दिन को लेकर तमाम बातें होती रहती हैं लेकिन, यह आज भी एक कौतुहल का ही विषय है कि 2 जून 1995 को लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में हुआ क्या था? मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब "बहनजी" में गेस्टहाउस में उस दिन घटी घटना की जानकारी आपको तसल्ली से मिल सकती है।
दरअसल, 1993 में हुए चुनाव में एक अब शायद पुनः होने वाला गठबंधन हुआ था, सपा और बसपा के बीच। चुनाव में इस गठबंधन की जीत हुई और मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुखिया बने। लेकिन, आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कर लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इस वजह से मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई।
सरकार को बचाने के लिए जोड़-घटाव किए जाने लगे। ऐसे में अंत में जब बात नहीं बनी तो नाराज सपा के कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए, जहां मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थीं।
बीजेपी विधायक ने बचाई इज़्ज़त और जान
बीजेपी विधायक ब्रह्नदत्त द्विवेदी ने बचाई थी मायवती की इज्जत और जिंदगी
बताया जाता है कि, 1995 का गेस्टहाउस काण्ड जब कुछ गुंडों ने बसपा सुप्रीमो को कमरे में बंद करके मारा और उनके कपड़े फाड़ दिए, जाने वो क्या करने वाले थे कि तभी अपनी जान पर खेलकर उन गुंडों से अकेले भिड़ने वाले बीजेपी विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी ने "जिनके ऊपर जानलेवा हमला हुआ" फिर भी वो गेस्टहाउस का दरवाजा तोड़कर मायावती को सकुशल बचा कर बाहर निकाल लाये थे।
यूपी की राजनीती में इस काण्ड को गेस्टहाउस काण्ड कहा जाता है और ये भारत की राजनीती के माथे पर कलंक है खुद मायावती ने कई बार कहा है कि जब मैं मुसीबत में थी तब मेरी ही पार्टी के लोग उन गुंडों से डरकर भाग गये थे लेकिन ब्रम्हदत्त द्विवेदी भाई ने अपनी जान की परवाह किये बिना मेरी जान बचाई थी।
माया संघ के सेवक को मानती थीं भाई
ब्रम्हदत्त द्विवेदी संघ के सेवक थे और उन्हें लाठी चलानी भी बखूबी आती थी इसलिए वो एक लाठी लेकर हथियारों से लैस गुंडों से भिड़ गये थे। मायावती ने भी उन्हें हमेशा अपना बड़ा भाई माना और कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। पूरे यूपी में मायावती बीजेपी का विरोध करती थीं लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रम्हदत्त के लिए प्रचार करती थीं।
जब उन्ही गुंडों ने बाद में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी तब मायावती उनके घर गयीं और फूट-फूट कर रोईं। उनकी विधवा ने जब चुनाव लड़ा तब मायावती ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा बल्कि लोगों से अपील की थी की मेरी जान बचाने के लिए दुश्मनी मोल लेकर शहीद होने वाले मेरे भाई की विधवा को वोट दें।
उस घटना की कहानी कहती एक किताब का अंश.....
चीख-पुकार मचाते हुए वे (समाजवादी पार्टी के विधायक, कार्यकर्ता और भीड़) अश्लील भाषा और गाली-गलौज का इस्तेमाल कर रहे थे। कॉमन हॉल में बैठे विधायकों (बहुजन समाज पार्टी के विधायक) ने जल्दी से मुख्य द्वार बंद कर दिया, परन्तु उन्मत्त झुंड ने उसे तोड़कर खोल दिया। फिर वे असहाय बसपा विधायकों पर टूट पड़े और उन्हें थप्‍पड़ मारने और ‌लतियाने लगे। कम-से-कम पांच बसपा विधायकों को घसीटते हुए जबर्दस्ती अतिथि गृह के बाहर ले जाकर गाड़ियों में डाला गया, जो उन्हें मुख्यमंत्री के निवास स्‍थान पर ले गईं। उन्हें राजबहादुर के नेतृत्व में बसपा विद्रोही गुट में शामिल होने के लिए और एक कागज पर मुलायम सिंह सरकार को समर्थन देने की शपथ लेते हुए दस्तखत करने को कहा गया। उनमें से कुछ तो इतने डर गए थे कि उन्होंने कोरे कागज पर ही दस्तखत कर दिए।
विधायकों को रात में काफी देर तक वहां बंदी बनाए रखा गया, जिस समय अति‌थिगृह में बसपा विधायकों को इस तरह से धर कर दबोचा जा रहा था, जैसे मुर्गियों को कसाई खाने ले जाया जा रहा हो, कमरों के सेट 1-2 के सामने, जहां मायावती कुछ विधायकों के साथ बैठी थीं। एक विचित्र नाटक ‌घटित हो रहा था, बाहर की भीड़ से कुछ-कुछ विधायक बच कर निकल आए थे और उन्होंने उन्हीं कमरों मे छिपने के लिए शरण ले ली थी। अंदर आने वाले आखिरी वरिष्ठ बसपा नेता आरके चौधरी थे, जिन्हें सिपाही रशीद अहमद और चौधरी के निजी रक्षक लालचंद की देखरेख में बचा कर लाए थे। कमरों में छिपे विधायकों को लालचंद ने दरवाज अंदर से लॉक करने की हिदायत दी और उन्होंने अभी दरवाजे बंद ही किए थे कि भीड़ में से एक झुंड गलियारे में धड़धड़ाता हुआ घुसा और दरवाजा पीटने लगा।
...... (जातिसूचक शब्द) औरत को उसकी मांद में से घसीट कर बाहर निकालो भीड़ की दहाड़ सुनाई दी, जिसमें कुछ निर्वाचित विधायक ‌और ‌थोड़ी सी महिलाएं भी शामिल थीं। दरवाजा पीटने के साथ-साथ‌ चिल्‍ला-चिल्‍लाकर ये भीड़ गंदी गालियां देते हुए ब्योरेवार व्याख्या कर रही ‌थी कि एक बार घसीट कर बाहर निकालने के बाद मायावती के स‌ाथ क्या किया जाएगा। परिस्थिति बहुत जल्‍दी से काबू के बाहर होती जा रही थी।
मायावती को दो क‌निष्ठ पुलिस अफसरों हिम्‍मत ने बचाया। ये ‌थे विजय भूषण, जो हजरतगंज स्टेशन के हाउस अफसर (एसएचओ) थे और सुभाष सिंह बघेल जो एसएचओ (वीआईपी) थे, जिन्होंने कुछ सिपाहियों को साथ ले कर बड़ी मुश्किल से भीड़ को पीछे धकेला। फिर वे सब गलियारे में कतारबद्ध होकर खड़े हो गए ताकि कोई भी उन्हें पार न कर सके। क्रोधित भीड़ ने फिर भी नारे लगाना और गालियां देना चालू रखा और मायावती को घसीट कर बाहर लाने की धमकी देती रही।
कुछ पुलिस अफसरों की इस साहसपूर्ण और सामयिक कार्यवाही के अलावा, ज्यादातर उपस्थित अधिकारियों ने जिनमें राज्य अतिथि गृह में संचालक और सुरक्षा कर्मचारी भी शामिल थे, इस पूरे पागलपन को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। यह सब एक घंटे से ज्यादा समय तक चलता रहा।
पिट रही थी बहनजी और एसएसपी लखनऊ खड़े होकर फूंक रहे थे सिगरेट
कई बसपा विधायकों और कुछ पुलिस अधिकारियों के ये बयान ‌स्तम्भित करने वाले थे कि जब विधायकों को अपहरण किया जा रहा था और मायावती के कमरों के आक्रमण हो रहा था, उस समय वहां लखनऊ के सीनियर सुपरिण्टेडेण्ट ऑफ पुलिस ओपी सिंह भी मौजूद थे।
चश्मदीद गवाहों के अनुसार वे सिर्फ खड़े हुए स‌िगरेट फूंक रहे थे। आक्रमण शुरू होने के तुरंत बाद रहस्यात्मक ढंग से, अतिथि गृह की बिजली और पानी की सप्लाई काट दी गई-प्रशासन की मिलीभगत का एक और संकेत। लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट के वहां पहुंचने के बाद ही वहां कि परिस्थिति में सुधार आया। उन्होंने क्रोधित भीड़ का डट कर मुकाबला करने की हिम्‍मत और जागरूकता का परिचय दिया।
सुपरिण्टेडेण्ट ऑफ पुलिस राजीव रंजन के साथ मिलकर जिला मजिस्ट्रट ने सबसे पहले भीड़ के उन सदस्यों को अतिथिगृह के दायरे के बाहर धकेला, जो विधायक नहीं थे। बाद में पुलिस के अतिरिक्त बल संगठनों के आने पर उन्होंने सपा के विधायकों समेत सभी को राज्य अति‌‌थि-गृह के दायरे के बाहर निकलवा दिया।
डीएम ने नही माना था मुलायम सिंह का भी आदेश, तभी बच पाई थी मायावती की इज्जत और जान!
यद्यपि ऐसा करने के लिए उन्हे विधायकों पर लाठीचार्ज करने के हुक्म का सहारा लेना पड़ा। फिर भी सपा के विधानसभा सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही न करने की मुख्यमंत्री के कार्यालय से मिली चेतावनी को अनसुनी करके वे अपने फैसले पर डटे रहे। अपनी ड्यूटी बिना डरे और पक्षपात न करने के फलस्वरूप रात को 11 बजे के बाद जिला मजिस्ट्रेट के लिए तत्काल प्रभावी रूप से तबादले का हुक्म जारी कर दिया गया।
जैसे ही राज्यपाल के कार्यालय, केंद्रीय सरकार और वरिष्ठ भाजपा नेताओं के दखल देते ही ज्यादा से ज्यादा रक्षा दल वहां पहुंचने लगे, अतिथि गृह के अंदर की स्थिति नियंत्रित होती गई। जब रक्षकों ने बिल्डिंग के अंदर और बाहर कस के कब्जा कर लिया तब गालियां, धमकियां और नारे लगाती हुई भीड़ धीरे-धीरे कम होती चली गई।
मायवाती और उनके पार्टी विधायकों के समूह को जिन्होंने अपने आप को कमरे के सेट 1-2 के अंदर बंद किया हुआ था, यकीन द‌िलाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट और अन्य अधिकारियों को बार अनुरोध करना पड़ा कि अब खतरा टल गया था, और वे दरवाजा खोल सकते थे। जब उन्होंने दरवाजा खोला, तब तक काफी रात हो चुकी थी।
मायावती और कांशीराम की पहली मुलाकात !
कांशीराम ने मायावती के बारे में तब सुना, जब वह राजनारायण से भिड़ गईं थीं। इमरजेंसी के बाद के चुनावों में राजनारायण ने इंदिरा गांधी को हरा दिया था। एक रात कांशीराम बिना कहे-सुने ही मायावती के घर पहुंच गए थे। वह उस वक्त आईएएस की तैयारी कर रही थीं। अरमान था कलेक्टर बनना। परिवार कांशीराम को देख कर खुशी के मारे पागल था। उन्होंने उनके बीच एक घंटा गुजारा। अजय बोस ने उसे रिकॉर्ड किया है। ‘कांशीराम ने कहा, ‘तुम्हारे हौसले, तुम्हारे इरादे और कुछ खासियतें मेरे नोटिस में आई हैं। मैं एक दिन तुम्हें इतनी बड़ी लीडर बना दूंगा कि एक कलेक्टर नहीं, बल्कि तमाम कलेक्टर तुम्हारे पास फाइलें लिए खड़े रहेंगे। तब तुम लोगों के लिए ठीक से काम कर पाओगी।’ तब मायावती तीस साल की भी नहीं हुई थीं। वह कांशीराम के साथ चलने को तैयार हो गईं। गुस्से में उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया। वह कांशीराम के साथ रहने लगीं। मायावती और कांशीराम दोनों ने शुरुआती चुनाव हारे। फिर वे दोनों संसद पहुंचे। संसद में मायावती का पहला दिन गजब का था। वह स्पीकर को संबोधित करने के बजाय दौड़ते हुए मंत्रियों को कोसने पहुंच गई थीं। कांशीराम ने इस तरह का कुछ नहीं किया था। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और बीजेपी के साथ अपने रिश्ते बनाए। उन्हीं रिश्तों की बिना पर मुलायम सिंह और कल्याण सिंह के समर्थकों से मायावती बच सकी थीं।
खुद के घर में ही मायावती को करना पड़ा था भेदभाव का सामना, लेकिन मायावती ने चुन लिया अलग रास्ता!
चार बार मुख्यमंत्री पद हासिल करने वाली उत्तर प्रदेश की दलित मुख्यमंत्री मायावती को घर में ही भेदभाव का सामना करना पड़ा था। यह भेदभाव उनके दलित होने पर नहीं, बल्कि लड़की होने के लिए किया गया था और करने वाले उनके ही पिता थे। यह खुलासा मायावती की जीवनी लिखने वाले लेखक अजय बोस ने की अपनी किताब ‘बहनजी- बायोग्राफी ऑफ मायावती’ में की है। छह भाईयों और तीन बहनों वाले उनके परिवार में सभी बहनों को भेदभाव का सामना करना पड़ा। जहां उनके सभी भाईयों की पढ़ाई पब्लिक स्कूलों में हुई, वहीं सभी बहनों का दाखिला सस्ते सरकारी स्कूल में करवाया गया। जबकि माया अपने सभी भाई बहनों में पढ़ने में सबसे तेज थीं।
किताब में इस बात का भी जिक्र है कि जब मायावती की मां ने लगातार तीन लड़कियों को को जन्म दिया तो उनके पिता बेटे की चाहत में दूसरी शादी का मन बना रहे थे। लेकिन उसके बाद उनकी मां ने छह भाईयों को जन्म दिया। इस किताब में लिखा है कि जब मुख्यमंत्री बनने के बाद एक बार उनके पिता ने पैतृक गांव बलरामपुर में दलितों की खातिर एक कल्याण योजना चलाने की अपील की थी तो बहन जी ने उनकी चुटकी ली और लिंग के आधार पर भेदभाव करने की उन्हें याद दिलाई। मुख्यमंत्री ने कहा कि बेटे नहीं, बल्कि उनकी बेटी अपने पिता का नाम रौशन करने जा रही है।
अजय बोस ने लिखा है कि पिता के व्यवहार से तंग आकर मायावती ने घर छोड़कर कांशीराम के साथ राजनीति में कूद गईं और उसके बाद जो कुछ हुआ वह एक इतिहास है। इस किताब में मायावती और कांशीराम के बीच संबंधों पर भी खुलकर बात रखी है। अजय बोस ने लिखा है कि किस प्रकार मायावती से नजदीकी को लेकर कांशीराम पर उनके ही सहयोगी विरोधी हो गए थे, लेकिन दोनों में ऐसी समझ थी, जिसको कोई भी तोड़ नहीं पाया। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी ने जो ऊंचाई छुई वह जगजाहिर है।
बहनजी करती थीं काशीराम की जासूसी !
कांशीराम और मायावती के बीच एक निजी भावनात्मक संबंध था। उनके करीबी रहे लोग भी इसकी पुष्टि करते हैं। अक्सर उनके झगड़ों की तीव्रता भी उनके बीच के इस भावनात्मक संबंध को रेखांकित कर देती थी। पुराने सहयोगियों के मुताबिक ये झगड़ा कई बार तो इतना तेज होता था कि उनके आस-पास मौजूद लोग घबरा जाते थे। मायावती कांशीराम को लेकर किसी भी चीज से ज्यादा अधिकार की भावना रखती थीं। कांशीराम के बेहद करीबी लोगों से उन्हें खतरा महसूस होता था। कई ऐसे लोग हैं जिन्हें कांशीराम पार्टी में लाये और जिन्हें मायावती के कारण असमय ही पार्टी छोड़नी पड़ी।
कांशीराम शुरुआत से ही मायावती को बेहद सम्मान की नजर से देखते थे और हमेशा उनकी तारीफ करते थे मगर मायावती लंबे समय तक उन्हें लेकर असुरक्षा महसूस करती रहीं। ऐसा तब तक रहा जब तक उन्होंने पार्टी पर एक तरह से पूरा नियंत्रण स्थापित नहीं कर लिया। पुराने सहयोगी याद करते हैं कि जब भी कांशीराम अपनी बैठक में किसी व्यक्ति के साथ बैठकर बातें कर रहे होते थे तो मायावती हर पांच मिनट बाद किसी न किसी बहाने से वहां आती रहती थी।
आचार्य संदीपन
आजतक पर संघ विचारक राकेश सिन्हा के प्रोफेसर होने को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता रागनी नायक ने सवाल किया..राकेश सिन्हा को हमला निजी लगा वो तिलमिला कर शो से बाहर जाने के लिए उठे और रागनी को भला बुरा कहने लगे..रागनी भी कहां शांति की देवी वो उग्र होकर राकेश सिन्हा से भिड़ गईं..एंकर अंजना ओम कश्यप की हर कोशिश नाकांम हो रही थी..शो अखाड़ा बन चुका था बस हाथापाई बाकी था..मामला बेकाबू देख नाराज़ वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता जी ने अंजना को कोसते हुए कहा ये क्या चल रहा है..अंजना आप शो संभाल नहीं पा रही हैं..अब बारी अंजना की थी वो ललकारते हुए खड़ी हुईं बोलीं माफ करें आलोक मेहता जी मुझे आप एंकरिंग न सिखाएं..इसके बाद अंजना की उम्र के बराबर पत्रकारिता में तजुर्बा रखने वाले आलोक मेहता जी का चेहरा देखने लायक था..न बोलते बना और न शो छोड़ के जा सके...
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुने हुए ताकत वर प्रधानमंत्री के हत्या के साजिश पर देश खामोश क्यों
विपक्ष साथ खड़े होने के बजाय राजनीति कर रही
मोदी जी ऐसे पद पर आसीन हैं जिस पर इस तरह का ख़तरा तो रहता ही है। इंदिरा जी और राजीव जी के उदाहरण हमारे सामने हैं। दोनों की हत्या का कारण यही था कि कुछ लोग उनकी नीतियों से सहमत नहीं थे। नाराज़गी इस हद तक थी कि वे हत्या जैसा बर्बर कृत्य भी कर बैठे।
इंदिरा जी को तो कहा भी गया था लेकिन उन्हें ये सलाह पसन्द नहीं आई। राजीव जी अगर जनता के बीच जाने की आदत न रखते तो शायद आज हमारे बीच होते।
मोदी जी के साथ भी वही स्थितियां हैं जो इंदिरा जी और राजीव जी के साथ थीं।
ये ठीक है कि राजनीति में कई दांव पेंच चलते हैं और सच को झूठ और झूठ को सच की तरह पेश भी किया जाता है। भावनाओं का दोहन भी कोई नई बात नहीं है। फिर भी दो प्रधानमंत्रियों को खो देने के बाद हमें सजग तो होना ही होगा।
राजनीति में असहमतियों की भी सीमाएं होतीं हैं, विरोध की हद भी बेहद न हो जाये, इसका भी ध्यान रखना होगा।
हम अब फिर से एक और प्रधानमंत्री नहीं खोना चाहते चाहे हम उनकी कथनी करनी से कितने ही असहमत हों।

प्रणव मुखर्जी जी

परसो श्री प्रणव मुखर्जी जी के सम्बोधन की आढ लेकर सुधीर चौधरी ने भी पूरे देश के सामने इस्लामिक इतिहास का चिट्ठा खोल ही दिया, भारत मे टीवी पर पहली इतना कहने का साहस किसी पत्रकार ने किया है।*
सीरिया गाजा और रोहिंग्यो के बच्चों पर चिल्लाने वाले भारत के मुसलमान जोधपुर में अपने अब्बू के हाथों मारी गई बच्ची पर चुपचाप है

शनिवार, 24 मार्च 2018

चोरों के गिरोह को दबोचने में माना पुलिस को मिली सफलता

चोरों के गिरोह को दबोचने में माना पुलिस को मिली सफलता



अकोला जिले के रहने वाले एक किसान का ट्रेक्टर चोरी हो गया था जिसकी शिकायत उसने माना पुलिस स्टेसन में की थी शिकायत दर्ज कराने के बाद पुलिस ने तहकीकात शुरू की और चोर को गिरफ्तार कर ट्रेक्टर को भी बरामद कर लिया ।

माना पुलिस थाने में २६ अक्टूबर को राजुरा सरोदे निवासी रामेश्वर आकाराम सरोदे ने शिकायत दर्ज कराई थी कि अज्ञात चोरों ने उनका  ३ लारव कीमत का ट्रैक्टर चुरा लिया ၊ वहीं विवाद मुक्ति समिति के अध्यक्ष दीपक.सरोदे रोटा रोटर कीमत १ लाख का पार कर दिया ၊ इस शिकायत के बाद जिला पुलिस अधीक्षक एम राकेश कलासागर , अपर पुलिस अधीक्षक विजयकांत सागर , उप विभागीय अधिकारी कल्पना भराडे  के मार्गदर्शन में थानाधिकारी घुगे  पुलिस उपनिरीक्षक राजेश जोशी , पुलिस कर्मचारी नंदकिशोर टिकार , सचिन दुबे, निलेश इंगले, तायडे , संदीप पवार ने जाल बिछाकर चोरों के गिरोह को गिरफ्तार कर उनके पास से ३ लाख कीमत का ट्रैक्टर जब्त किया गया   ၊ पुलिस द्वारा पकड़े गए आरोपियों में मंगेश राजु मोहोड, आकाश निरंजन मोहोड, संतोष रामेश्वर रविराव , अविनाश  अजाबराव वानखडे, अर्जुन मेघराज पवार , अब्दुल तहसीन अब्दुल मतीन को गिरफ्तार कर लिया၊ पुलिस को संदेह है कि इन आरोपियों से और भी चोरी का माल बरामद हो सकता है।
बोल उठती है तस्वीर भी.....🌹🍂🌹*
*मन से बुला कर देखिये*
*दिल की बात ज़रा प्रभु को*
*सुना कर देखिये*
*देते है वो सबकी बातों का जवाब*
*दुःख अपने दिल का उनको*
*बता कर देखिये.....*
*होगा इक रोज़ तुमको भी*
*किस्मत पे अपनी नाज़*
*चरणों में उनके सिर को झुका कर देखिये....

कमाल है सबको मोदी मुक्त भारत तो चाहिये

कमाल है सबको मोदी मुक्त भारत तो चाहिये
लेकिन किसी को भी👇
अपराध मुक्त,
भ्रष्टाचार मुक्त,
रिश्वत खोरी मुक्त,
कश्मीर समस्या मुक्त,
जातिवाद मुक्त,
धार्मिक राजनिती मुक्त,
#इस्लामिक_आतंकवाद मुक्त,
#राम_मंदिर_युक्त
#सबका_साथ_सबका_विकास युक्त
भारत किसी को नही चाहिये 

पीएम मोदी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बाद समर्थन में आया ये बड़ा सुपरस्टार, नायडू को लेकर किया बड़ा खुलासा

रेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव लाने का TDP यसर,AIMIM कांग्रेस पार्टी जोर शोर से लगी हुई है. जिसके समर्थन में सभी विरोधी एक जुट हो गए हैं. जिसके चलते हर दिन सदन में सिर्फ हंगामा हो रहा है, जिसके चलते आज लगातार 13वे दिन शोर हंगामे के चलते संसद स्थगित की गयी.
आम जनता के करोड़ों रूपए हो रहे बर्बाद
दरअसल इन राजनितिक पार्टियों ने संसद का मज़ाक बना के रख दिया है हर दिन लोकसभा के एक घंटे के एक करोड़ और राज्यसभा के एक घंटे के एक करोड़ रूपए बर्बाद हो रहे हैं TDP के इस हंगामे की वजह से. ये आम जनता का पैसा है जिसके चलते संसद में सुबह से हल्ला करना शुरू करते है और फिर चुपचाप अपने घर चले जाते हैं. संसद तो ठप्प रहती है लेकिन सांसदों को उनकी लाखों रूपए सैलरी(भत्ता मिलाके) महीने के अंत में पूरी मिल जाती है.
तो वहीँ अब मोदी सरकार के सभी विरोधी के एकजुट होने और TDP के अविश्वास प्रस्ताव पर मोदी के समर्थन में ये सुपरस्टार आ गया है जिसने TDP को लेकर बड़ा खुलासा किया है. इससे पहले खुद चंद्रबाबू नायडू ये कह चुके हैं कि अगर बीजेपी से गठबंधन नहीं तोड़ते तो मुस्लिम वर्ग नाराज़ हो जाता.
TDP के खिलाफ आवाज़ उठायी सुपरस्टार पवन कल्याण ने
अभी मिल रही ताज़ा खबर के मुताबिक टॉलीवुड सुपरस्टार और जनसेना पार्टी के अध्यक्ष पवन कल्याण ने चंद्रबाबू नायडू सरकार के भ्रष्टाचार की जांच के लिए मोदी सरकार से मांग की है. उन्होंने कहा है कि चंद्रबाबू नायडू की जानकारी में हो रहा है बड़ा करप्शन.
भ्रष्टाचार की सारी जानकारी है
पवन कल्याण ने खुलासा किया है कि चंद्रबाबू नायडू को भ्रष्टाचार की सारी जानकारी है और खुद टीडीपी के कुछ मंत्रियों और करीब 40 विधायकों ने उन्हें चंद्रबाबू नायडू के बेटे लोकेश और टीडीपी नेताओं के भ्रष्टाचार में शामिल होने की जानकारियां दी हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
नायडू की जानकारी में सारा भ्रष्टाचार चल रहा है
पवन ने आगे कहा “‘मैंने अचानक चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ बोलना शुरू नहीं किया. मैं 4 साल से चुप नहीं बैठा था. मैंने सीएम चंद्रबाबू नायडू को कई बार आंध्रप्रदेश में चल रहे भ्रष्टाचार के बारे में सावधान करने की कोशिश की, लेकिन वो करप्शन खत्म करने को लेकर गंभीर नहीं हैं. चंद्रबाबू नायडू की जानकारी में सारा भ्रष्टाचार चल रहा है.”
पोलावरम प्रोजेक्ट के निर्माण का काम प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर को इसी वजह से दिया जा रहा है. चंद्रबाबू नायडू केंद्र को गुमराह करते रहे हैं. आंध्र प्रदेश के लोगों को भ्रष्टाचार साफ दिख रहा है. मैं भी कोई बाहरी नहीं हूं. मुझे भी समझ आता है. कुछ मंत्रियों और 30-40 विधायकों ने आकर खुद आंध्र प्रदेश में चल रहे भयानक भ्रष्टाचार की शिकायत की थी. वो चाहते थे कि मैं सीएम को समझाऊं. मैंने कोशिश भी की, लेकिन चंद्रबाबू नायडू भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर बिलकुल गंभीर नहीं हैं. इसलिए मुझे बोलना पड़ा. अब केंद्र सरकार को हरकत में आना चाहिए. फंड्स की धांधली की जांच होनी चाहिए’.
मोदी सरकार से मिल रहे धन का ज़बरदस्त दुरूपयोग हुआ
पवन कल्याण ने सनसनीखेज़ खुलासा करते हुए कहा आंध्रप्रदेश को जो मोदी सरकार से धन मिला है, उसका जबरदस्त दुरुपयोग किया गया है. पैसों का सही इस्तेमाल नहीं हुआ. आंध्र की नई राजधानी को लेकर सही काम नहीं हुआ. पवन कल्याण का आरोप है कि नई राजधानी बनाने के नाम पर बहुत सारा पैसा उड़ा दिया गया.
2014 में आंध्र में टीडीपी-बीजेपी सरकार के लिए वोट जुटाने वाले पवन कल्याण की खासी भूमिका रही थी और तभी से पवन कल्याण पीएम मोदी के करीबी माने जाते रहे हैं. पवन कल्याण का कहना है कि आंध्र प्रदेश में लोग TDP से बहुत ज्यादा नाराज हैं. क्यूंकि TDP ने बीजेपी की तरफ से दिए जा रहे करोड़ों की आर्थिक मदद को लेने से इंकार कर दिया था.
दरअसल तेदेपा आंध्र के लिए विषेश दर्जे पर अड़ी हुई जबकि नए नियम के मुताबिक विशेष दर्जा केवल पूर्वोत्तर राज्यों को ही दिया जा सकता है. लेकिन फिर भी विशेष राज्य बनने पर भी जो 90 फीसदी रकम मिलती है वो बीजेपी देने को तैयार है. यहाँ तक की पीएम मोदी से सीधा फोन पर भी बात करने से नायडू नहीं माने उन्होंने YSR पार्टी को समर्थन देने की बात कही. जबकि YSR खुद ममता बैनर्जी से मदद मांग रही है.
बीजपी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा कि ‘जनता की राय आंध्र प्रदेश सरकार और TDP के खिलाफ जा रही है। वो खुद को 2019 में हारते हुए देख रहे हैं और अपनी इस हार का दोष हम पर मढ़ना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा ‘आंध्र प्रदेश के सीएम को ये समझने में 4 साल क्यों लग गए कि गठबंधन काम नहीं कर रहा है। आंध्र बीजेपी का अगला त्रिपुरा होगा।’

बीजेपी की 2019 की राह आसान नही

बीजेपी की 2019 की राह आसान नही
बीजेपी की सात कमजोर कड़ी
मोदी सरकार की सबसे बड़ी सात कमजोर कड़ी है अगर इस पर विश्लेषण किया जाए तो बीजेपी को 2014 जैसी 282 सीट मिलना मुश्किल दिखाई दे रहा है । कुछ भी हो सकता है कहा नही जा सकता 282 सीटे मिल भी सकती हैं ।|इतिहास खुद को दोहराता भी है। इन सात कमजोर कड़ी के चलते बीजेपी को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। बीजेपी को 2014 में 282 सीटों पर विजय मिली थी । बीजेपी को घेरने के लिए 2019 में उत्तर प्रदेश और बिहार में विपक्षी दलों ने पासा फेक दिया है । एक तो 2014 जैसी मोदी लहर अब नही राह गयी है। दो - बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में अभी की हालात के अनुसार 180 से अधिक सीटें मिल सकती हैं । तीन, संयुक्त विपक्ष उनके वैचारिक मतभेद होने के बाद भी सत्ता में आ सकते हैं अगर सभी दल अपना सभी मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाएं तब ये हो भी सकता है । अभी चुनाव होने में एक साल बचे हैं एक साल पहले अनुमान लगाना सही भी नही है लेकिन आज के हालात ऐसे ही बने हुए हैं और एक साल बाद भी ऐसे ही हालात रहे तो बीजेपी के लिए दुबारा सत्ता में आना मुश्किल दिखाई दे रहा है। क्या बीजेपी इस हालात में भी 2014 की तरह 282 सीट 2019 में भी जीत सकती है। 2014 में कांग्रेस विरोधी लहर और मोदी लहर चल रही थी। इस सुनामी मोदी लहर में बीजेपी उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन किया । 2019 के चुनाव में ऐसी सुनामी लहर दिखाई नही दे रही है और इस तरह की चुनावी सुनामी लहर अब दुर्लभ हैं। यहां तक ​​कि सहानुभूति की लहर मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या की वजह से कांग्रेस को मिली थी जिसके चलते कांग्रेस लोकसभा में बहुमत के करीब पहुच गयी थी । इस सहानुभूति की लहर में भी कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नही मिला था प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव पांच साल तक एक अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर के अपना कार्यकाल पूरा किया था । उसके बाद के लोकसभा चुनाव जब हुए तो किसी भी दल को बहुमत नही मिला उस समय प्रधानमंत्री के रूप में एच.डी. देवेगौड़ा ने, बाहर से कांग्रेस का समर्थन लेकर 1996 में अपनी पहली खिचड़ी संयुक्त मोर्चा सरकार बनाई थी। क्या इतिहास 2019 में दोहराएगा ? मायावती, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, एमके स्टालिन, शरद पवार, असाउद्दीन ओवैसी , उमर अब्दुल्ला और सीताराम येचुरी सब एक होंगे यदि ऐसा होता है तो बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है क्या सभी मिलकर एक नई संयुक्त मोर्चा सरकार का गठन कर पाएंगे। क्या कांग्रेस इस खिचड़ी सरकार के निर्माण की निगरानी करेगी , क्या इन लोगों को समर्थन देगी जाहिर है, की महाराज तो राहुल गांधी ही है। क्या राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस का अंत आ गया है? कैसे कांग्रेस नई लग रही संयुक्त मोर्चा की दर्जन से ज्यादा नेताओं में से टकरायेगी या उनसे गठबंधन करेगी । क्या कांग्रेस इन सभी लोगों पर नियंत्रण रख पाएगी क्यों कि 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए संजीवनी बनेगा ? टीएमसी की ममता बनर्जी और टीआरएस 'KCR एक गैर भाजपा, गैर कांग्रेसी तीसरे मोर्चे (TF) स्थापित करने के लिए योजना बना रहे हैं। क्या बना पाएंगे ? अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत होगी ।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक और केरल इन सात प्रदेशों में महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों पर कांग्रेस विजय प्राप्त करने की उम्मीद कर सकती हैं। दो (पंजाब एवं हरियाणा) में एक (केरल) में और बहुध्रुवीय प्रतियोगिताओं में इन राज्यों के चार में भाजपा के साथ द्विआधारी प्रतियोगिताओं में बंद कर दिया जाता है, वाम के साथ। जब कांग्रेस ने 1996 में बाहर से समर्थन देकर देवेगौड़ा की सरकार बनाई थी उस समय कांग्रेस की 140 लोकसभा सीट थी । विभिन्न दलों से बना यूएफ 192 सीटें और भाजपा ने 161 सीटें थीं। 2019 में अगर संयुक्त विपक्ष (संयुक्त मोर्चा के साथ साथ तीसरे मोर्चे) होने की संभावना थोक में टीएमसी, टीआरएस, द्रमुक, सपा और बसपा के साथ 120-140 सीटों पर जीत जाते हैं तो राकांपा, एनसी, AIMIM और वाम की तरह मिश्रण में छोटे दलों संख्या ऊपर होगा। बिहार में लालू प्रसाद के राजद,-चुनाव द्वारा हाल ही में अररिया और जहानाबाद में अपनी जीत (लेकिन भभुआ में हानि) के बावजूद, 2019 लोकसभा चुनाव अभी तक एक और धोखाधड़ी मामले में लालू के जेल जाने को देखते हुए दो अंकों में आने की संभावना नहीं है। सहानुभूति कारक पतली पहन सकते हैं। त्रिशंकु संसद यूएफ-TF में 120-140 सीटें गठबंधन और कांग्रेस के लिए 90 सीटें, महागठबंधन के लिए 210-230 सीटों के कुल के साथ, 2019 लोकसभा चुनाव में स्पष्ट रूप से एक त्रिशंकु संसद का उत्पादन करेगा। अभी तक जो हालात हैं उस हिसाब से परिकल्पना है कि भाजपा 180-200 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। कुछ विश्वसनीय सहयोगी दलों के साथ, भाजपा नेतृत्व वाली राजग इस प्रकार 240 सीटों को पार करने में असमर्थ होंगे। बीजद, अन्नाद्रमुक, तेदेपा और निर्दलीय स्वाधीन दल बाकी सब किंगमेकर बन सकते हैं । क्या 2019 में 17 वीं लोकसभा इस तरह हो सकती है। एनडीए 240 सीट कांग्रेस के नेतृत्व वाली महागठबंधन (यूनाईटेड फ्रंट+ थर्ड फ्रंट) 220 सीट दूसरे दल 85 सीट। अगर ऐसा होता है तो 2019 में बीजेपी की राह आसान नही है ।मोदी ने सात महत्वपूर्ण त्रुटियां की हैं जो भाजपा को नुकसान पहुँचा सकती हैं। सबसे पहले, एनडीए सहयोगियों को विमुख करना दूसरा, केन्द्रीय मंत्रिमंडल में गलत पोर्टफोलियो का आवंटन (अरुण जेटली बेहतर विदेश मंत्री और सुषमा स्वराज एक बेहतर गृह मंत्री हो सकते थे । लेकिन इन को ये पोर्टपोलिओ नही मिला । महेश शर्मा, हर्षवर्धन, राधा मोहन सिंह और उमा भारती जैसे मंत्रियों ने खुद का प्रदर्शन अच्छा नहीं किया है)। तीन, गाय जागरूकता से लेकर पार्टी के सांसदों की विभागीय टिप्पणियों के बीच के मुद्दे पर चुप रहना।
चार, पीएमओ या विदेश मंत्रालय द्वारा हर प्रमुख देश के रूप में दैनिक मीडिया ब्रीफिंग नहीं लेते- और भारत के रूप में जब सैयद अकबरुद्दीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता थे पांच, मजबूत प्रश्नोत्तर सत्रों के साथ नियमित प्रेस सम्मेलनों में खुद को प्रस्तुत नहीं करना।
छह, यूपीए के अपराधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को धीमा करने के लिए नौकरशाही की अनुमति ना देना । सात, पाकिस्तान पर एक असंगत नीति के बाद मोदी सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धियां - और बहुत से हैं।
क्या राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस का कहना है कि 90 सीटों से यूपी + टीएफ सरकार को बाहर से समर्थन देने के लिए तैयार रहना चाहिए? महागठबंधन में रहना चाहिए ।

ABP Viral सच ने उजागर किए

ABP Viral सच ने उजागर किए ...
कांग्रेस के फैलाये गए 4 झूठ ..
पहला ये कि ललित मोदी की वकील सुषमा स्वराज की बेटी थी जबकि उसका वकील था -महमूद आब्दी
दूसरा झूठ ये फैलाया गया कि नीरव मोदी की वकील जेटली की बेटी है जबकि उसका वकील-विजय अग्रवाल..
तीसरा झूठ मोदी जी गोरखपुर हार के बाद वाराणसी से चुनाव नही लडेंगे
चौथा फोटो जिसमें राजनाथ सिंह के शूज की लेस पोलिस अधिकारी बांध रहा है
सभी झूठ साबित हूए 😯

बीजेपी को हराए जाने की स्थिति में देंगे कांग्रेस का साथ: प्रकाश करात

बीजेपी को हराए जाने की स्थिति में देंगे कांग्रेस का साथ: प्रकाश करात
सीपीएम (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) के पूर्व सचिव प्रकाश करात ने कहा है कि बीजेपी को रोकने के लिए जो भी करने पड़े वो करेंगे, फिर चाहे कांग्रेस से ही हाथ क्यों ना मिलाना पड़े. बता दें कि कुछ दिनों पहले ही प्रकाश करात ने पार्टी मीटिंग में कहा था कि वो कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगे और चुनाव में अकेले लड़ेंगे.
सीपीएम के मुखपत्र 'पीपुल्स डेमोक्रेसी' में करात ने एक संपादकीय में लिखा है कि यूपी के उपचुनाव भविष्य के लिए सीख हैं कि बीजेपी को कैसे हराया जा सकता है. अगर सभी बड़ी गैर-बीजेपी पार्टीयां एक साथ आ जाए तब जाकर छोटी पार्टियां अपना समर्थन देने में आगे आएंगी. लेफ्ट पार्टी ने साल की शुरुआत में एक ड्राफ्ट तैयार किया था जिसमें कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाओं को खारिज कर दिया था.
अब पार्टी के दूसरे धड़े ने मान लिया है कि विपक्ष के वोटों के बंटवारे से सीधा फायदा बीजेपी को हो रहा है. इसके लिए हमें क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की जरुरत हैं जिससे बीजेपी की जीत के रथ को रोका जा सके.
जिस प्रकार कांग्रेसियों को गलतफहमी है कि
चरखे से आजादी आई थी..
ठीक उसी प्रकार अन्ना हजारे को भी
गलतफहमी हो गई है कि उसके अनशन से
मोदी सरकार गिर जाएगी