बुधवार, 28 जुलाई 2010

हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए

हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए




माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे





हवा उड़ाए लिए जा रही है हर चादर



पुराने लोग सभी इन्तेक़ाल करने लगे





ऐ ख़ुदा ! फूल —से बच्चों की हिफ़ाज़त करना



मुफ़लिसी चाह रही है मेरे घर में रहना





हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो



हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है





ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे



माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे





जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई



देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई





ख़ुदा करे कि उम्मीदों के हाथ पीले हों



अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह





घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें



मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है





यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा



ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा





स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं



पत्ते देहाती रहते हैं फल शहरी हो जाते हैं

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पूछते हो तो सुनो कौन हू मै

पूछते हो तो सुनो कौन हू मै


चन्द सिमटे हुए अशार् हू मै

सिर्फ़ तारीफ़ से यहा कुछ नही होता

आपकी दुआओ का तलबगार् हू मै

बयान्-ए-दिल पेश करता हू जब

लोग कहते है दिल-ए-बीमार हू मै

बोलू अगर खरा तो हू शमशीर

और अगर लिख डालू तो तलवार हू मै

तारीफ़ करने पर अगर उतर आऊ कभी

तो गुलफ़ाम हू मै, गुलज़ार हू मै

जज़्बात को सवारना जानता हू बहुत खूब

शायरी का सरताज हू, शहकार हू मै

लफ़्ज़ो से यू खेलना सबको नही आता

मुझे आता है, समझदार हू मै

है और भी खासियते मेरी दोस्तो

मिलो, बताने को तैयार हू मै.

क्या लिखूँ

कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ

या दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰

मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰

वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँ

वो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँ

मै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँ

मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँ

मीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ

बचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ

सागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँ

वो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ

सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँ

गीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰

मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰

मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰



कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ

या दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰