शनिवार, 24 मार्च 2018

बीजेपी की 2019 की राह आसान नही

बीजेपी की 2019 की राह आसान नही
बीजेपी की सात कमजोर कड़ी
मोदी सरकार की सबसे बड़ी सात कमजोर कड़ी है अगर इस पर विश्लेषण किया जाए तो बीजेपी को 2014 जैसी 282 सीट मिलना मुश्किल दिखाई दे रहा है । कुछ भी हो सकता है कहा नही जा सकता 282 सीटे मिल भी सकती हैं ।|इतिहास खुद को दोहराता भी है। इन सात कमजोर कड़ी के चलते बीजेपी को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। बीजेपी को 2014 में 282 सीटों पर विजय मिली थी । बीजेपी को घेरने के लिए 2019 में उत्तर प्रदेश और बिहार में विपक्षी दलों ने पासा फेक दिया है । एक तो 2014 जैसी मोदी लहर अब नही राह गयी है। दो - बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में अभी की हालात के अनुसार 180 से अधिक सीटें मिल सकती हैं । तीन, संयुक्त विपक्ष उनके वैचारिक मतभेद होने के बाद भी सत्ता में आ सकते हैं अगर सभी दल अपना सभी मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाएं तब ये हो भी सकता है । अभी चुनाव होने में एक साल बचे हैं एक साल पहले अनुमान लगाना सही भी नही है लेकिन आज के हालात ऐसे ही बने हुए हैं और एक साल बाद भी ऐसे ही हालात रहे तो बीजेपी के लिए दुबारा सत्ता में आना मुश्किल दिखाई दे रहा है। क्या बीजेपी इस हालात में भी 2014 की तरह 282 सीट 2019 में भी जीत सकती है। 2014 में कांग्रेस विरोधी लहर और मोदी लहर चल रही थी। इस सुनामी मोदी लहर में बीजेपी उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन किया । 2019 के चुनाव में ऐसी सुनामी लहर दिखाई नही दे रही है और इस तरह की चुनावी सुनामी लहर अब दुर्लभ हैं। यहां तक ​​कि सहानुभूति की लहर मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या की वजह से कांग्रेस को मिली थी जिसके चलते कांग्रेस लोकसभा में बहुमत के करीब पहुच गयी थी । इस सहानुभूति की लहर में भी कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नही मिला था प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव पांच साल तक एक अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर के अपना कार्यकाल पूरा किया था । उसके बाद के लोकसभा चुनाव जब हुए तो किसी भी दल को बहुमत नही मिला उस समय प्रधानमंत्री के रूप में एच.डी. देवेगौड़ा ने, बाहर से कांग्रेस का समर्थन लेकर 1996 में अपनी पहली खिचड़ी संयुक्त मोर्चा सरकार बनाई थी। क्या इतिहास 2019 में दोहराएगा ? मायावती, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, एमके स्टालिन, शरद पवार, असाउद्दीन ओवैसी , उमर अब्दुल्ला और सीताराम येचुरी सब एक होंगे यदि ऐसा होता है तो बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है क्या सभी मिलकर एक नई संयुक्त मोर्चा सरकार का गठन कर पाएंगे। क्या कांग्रेस इस खिचड़ी सरकार के निर्माण की निगरानी करेगी , क्या इन लोगों को समर्थन देगी जाहिर है, की महाराज तो राहुल गांधी ही है। क्या राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस का अंत आ गया है? कैसे कांग्रेस नई लग रही संयुक्त मोर्चा की दर्जन से ज्यादा नेताओं में से टकरायेगी या उनसे गठबंधन करेगी । क्या कांग्रेस इन सभी लोगों पर नियंत्रण रख पाएगी क्यों कि 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए संजीवनी बनेगा ? टीएमसी की ममता बनर्जी और टीआरएस 'KCR एक गैर भाजपा, गैर कांग्रेसी तीसरे मोर्चे (TF) स्थापित करने के लिए योजना बना रहे हैं। क्या बना पाएंगे ? अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत होगी ।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक और केरल इन सात प्रदेशों में महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों पर कांग्रेस विजय प्राप्त करने की उम्मीद कर सकती हैं। दो (पंजाब एवं हरियाणा) में एक (केरल) में और बहुध्रुवीय प्रतियोगिताओं में इन राज्यों के चार में भाजपा के साथ द्विआधारी प्रतियोगिताओं में बंद कर दिया जाता है, वाम के साथ। जब कांग्रेस ने 1996 में बाहर से समर्थन देकर देवेगौड़ा की सरकार बनाई थी उस समय कांग्रेस की 140 लोकसभा सीट थी । विभिन्न दलों से बना यूएफ 192 सीटें और भाजपा ने 161 सीटें थीं। 2019 में अगर संयुक्त विपक्ष (संयुक्त मोर्चा के साथ साथ तीसरे मोर्चे) होने की संभावना थोक में टीएमसी, टीआरएस, द्रमुक, सपा और बसपा के साथ 120-140 सीटों पर जीत जाते हैं तो राकांपा, एनसी, AIMIM और वाम की तरह मिश्रण में छोटे दलों संख्या ऊपर होगा। बिहार में लालू प्रसाद के राजद,-चुनाव द्वारा हाल ही में अररिया और जहानाबाद में अपनी जीत (लेकिन भभुआ में हानि) के बावजूद, 2019 लोकसभा चुनाव अभी तक एक और धोखाधड़ी मामले में लालू के जेल जाने को देखते हुए दो अंकों में आने की संभावना नहीं है। सहानुभूति कारक पतली पहन सकते हैं। त्रिशंकु संसद यूएफ-TF में 120-140 सीटें गठबंधन और कांग्रेस के लिए 90 सीटें, महागठबंधन के लिए 210-230 सीटों के कुल के साथ, 2019 लोकसभा चुनाव में स्पष्ट रूप से एक त्रिशंकु संसद का उत्पादन करेगा। अभी तक जो हालात हैं उस हिसाब से परिकल्पना है कि भाजपा 180-200 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। कुछ विश्वसनीय सहयोगी दलों के साथ, भाजपा नेतृत्व वाली राजग इस प्रकार 240 सीटों को पार करने में असमर्थ होंगे। बीजद, अन्नाद्रमुक, तेदेपा और निर्दलीय स्वाधीन दल बाकी सब किंगमेकर बन सकते हैं । क्या 2019 में 17 वीं लोकसभा इस तरह हो सकती है। एनडीए 240 सीट कांग्रेस के नेतृत्व वाली महागठबंधन (यूनाईटेड फ्रंट+ थर्ड फ्रंट) 220 सीट दूसरे दल 85 सीट। अगर ऐसा होता है तो 2019 में बीजेपी की राह आसान नही है ।मोदी ने सात महत्वपूर्ण त्रुटियां की हैं जो भाजपा को नुकसान पहुँचा सकती हैं। सबसे पहले, एनडीए सहयोगियों को विमुख करना दूसरा, केन्द्रीय मंत्रिमंडल में गलत पोर्टफोलियो का आवंटन (अरुण जेटली बेहतर विदेश मंत्री और सुषमा स्वराज एक बेहतर गृह मंत्री हो सकते थे । लेकिन इन को ये पोर्टपोलिओ नही मिला । महेश शर्मा, हर्षवर्धन, राधा मोहन सिंह और उमा भारती जैसे मंत्रियों ने खुद का प्रदर्शन अच्छा नहीं किया है)। तीन, गाय जागरूकता से लेकर पार्टी के सांसदों की विभागीय टिप्पणियों के बीच के मुद्दे पर चुप रहना।
चार, पीएमओ या विदेश मंत्रालय द्वारा हर प्रमुख देश के रूप में दैनिक मीडिया ब्रीफिंग नहीं लेते- और भारत के रूप में जब सैयद अकबरुद्दीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता थे पांच, मजबूत प्रश्नोत्तर सत्रों के साथ नियमित प्रेस सम्मेलनों में खुद को प्रस्तुत नहीं करना।
छह, यूपीए के अपराधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को धीमा करने के लिए नौकरशाही की अनुमति ना देना । सात, पाकिस्तान पर एक असंगत नीति के बाद मोदी सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धियां - और बहुत से हैं।
क्या राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस का कहना है कि 90 सीटों से यूपी + टीएफ सरकार को बाहर से समर्थन देने के लिए तैयार रहना चाहिए? महागठबंधन में रहना चाहिए ।

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