सोमवार, 11 जून 2018

मोदी जी ऐसे पद पर आसीन हैं जिस पर इस तरह का ख़तरा तो रहता ही है। इंदिरा जी और राजीव जी के उदाहरण हमारे सामने हैं। दोनों की हत्या का कारण यही था कि कुछ लोग उनकी नीतियों से सहमत नहीं थे। नाराज़गी इस हद तक थी कि वे हत्या जैसा बर्बर कृत्य भी कर बैठे।
इंदिरा जी को तो कहा भी गया था लेकिन उन्हें ये सलाह पसन्द नहीं आई। राजीव जी अगर जनता के बीच जाने की आदत न रखते तो शायद आज हमारे बीच होते।
मोदी जी के साथ भी वही स्थितियां हैं जो इंदिरा जी और राजीव जी के साथ थीं।
ये ठीक है कि राजनीति में कई दांव पेंच चलते हैं और सच को झूठ और झूठ को सच की तरह पेश भी किया जाता है। भावनाओं का दोहन भी कोई नई बात नहीं है। फिर भी दो प्रधानमंत्रियों को खो देने के बाद हमें सजग तो होना ही होगा।
राजनीति में असहमतियों की भी सीमाएं होतीं हैं, विरोध की हद भी बेहद न हो जाये, इसका भी ध्यान रखना होगा।
हम अब फिर से एक और प्रधानमंत्री नहीं खोना चाहते चाहे हम उनकी कथनी करनी से कितने ही असहमत हों।

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